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KAVITA YE PRAKRITI HUMSE KUCHH KAHTI HE...

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प्रस्तुत कविता में प्रकृति हमें ,अपनी चिंता,परेशानी,चेतावनी व जिम्मेदारी से अवगत करती हैं |    चिंता  सालों  से में ऐसे ही काम करती आ रही हुँ   मेरा दोहन जो किया हे में घायल होती जा रही हुँ  अब तो संभल जाओं मेरे बच्चों  नहीं तो में मृत्यु की और जा रही हुँ  परेशानी  कारखानों से निकलता जो धुआँ हे  मेरे फेफड़ो में अब संक्रमण हुआ हे  प्रकिति तुमसे यही तो कहना चाहती हे  देखो मेरी हालत कैसी हो जाती हे  चेतावनी  कोरोना तो एक बहाना हे  प्रकिति को तुम्हे चेताना  हे  सुधार लो अपनी हरकते  नहीं तो जल्द ही इस दुनिया से जाना हे  जिम्मेदारी  घर-बंधी थोड़ा सा आराम हे  मुझे भी तो बहुत सारा काम हे  हवा को चलाना हे ,पानी को बरसाना हे  मेर बच्चो तुम्हारे लिया खाना भी तो उगना हे |  

DIPAWALI

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मैं ऐसा ही हूं शायद

अपने लिए या आपके लिए गलत हूं मैं शायद, पर क्या करूं साथियों मैं ऐसा ही हूं शायद।

मैं तुमसे मिला था

मैं तुमसे मिला था मैं तुम में ही मिलकर रह जाऊंगा, मैं अकेला आया था मैं अकेले चला जाऊंगा । कुछ यादें मैं अपने साथ लाया था, कुछ यादें मैं आपके साथ छोड़ जाऊंगा।।

Pooja sayari

तू पूजा थी मेरी ब्रह्म की हो गई,  मैं श्याम था तेरा अपना ना हो पाया।

shayari barish

Aaj Mere Shahar Mein Afat Ki Barish Hui. Mujhe Milna tha unse Ab Yah Khata Yun Hi Khariz Hui.

लाड़ली बेटी है ये हिन्दी - मृणालिनी घुले

लाड़ली बेटी है ये हिन्दी - मृणालिनी घुले संस्कृत की एक लाड़ली बेटी है ये हिन्दी। बहनों को साथ लेकर चलती है ये हिन्दी। सुंदर है, मनोरम है, मीठी है, सरल है, ओजस्विनी है और अनूठी है ये हिन्दी। पाथेय है, प्रवास में, परिचय का सूत्र है, मैत्री को जोड़ने की सांकल है ये हिन्दी। पढ़ने व पढ़ाने में सहज है, ये सुगम है, साहित्य का असीम सागर है ये हिन्दी। तुलसी, कबीर, मीरा ने इसमें ही लिखा है, कवि सूर के सागर की गागर है ये हिन्दी। वागेश्वरी का माथे पर वरदहस्त है, निश्चय ही वंदनीय मां-सम है ये हिंदी। अंग्रेजी से भी इसका कोई बैर नहीं है, उसको भी अपनेपन से लुभाती है ये हिन्दी। यूं तो देश में कई भाषाएं और हैं, पर राष्ट्र के माथे की बिंदी है ये हिन्दी।