KAVITA YE PRAKRITI HUMSE KUCHH KAHTI HE...

प्रस्तुत कविता में प्रकृति हमें ,अपनी चिंता,परेशानी,चेतावनी व जिम्मेदारी से अवगत करती हैं |   
चिंता 
सालों  से में ऐसे ही काम करती आ रही हुँ  
मेरा दोहन जो किया हे में घायल होती जा रही हुँ 
अब तो संभल जाओं मेरे बच्चों 
नहीं तो में मृत्यु की और जा रही हुँ 
परेशानी 
कारखानों से निकलता जो धुआँ हे 
मेरे फेफड़ो में अब संक्रमण हुआ हे 
प्रकिति तुमसे यही तो कहना चाहती हे 
देखो मेरी हालत कैसी हो जाती हे 
चेतावनी 
कोरोना तो एक बहाना हे 
प्रकिति को तुम्हे चेताना  हे 
सुधार लो अपनी हरकते 
नहीं तो जल्द ही इस दुनिया से जाना हे 
जिम्मेदारी 
घर-बंधी थोड़ा सा आराम हे 
मुझे भी तो बहुत सारा काम हे 
हवा को चलाना हे ,पानी को बरसाना हे 
मेर बच्चो तुम्हारे लिया खाना भी तो उगना हे |  


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